Har ghar me tiranga laharaye| हर घर में तिरंगा लहराए : लक्ष्मी बिष्ट की कविता

हर घर में तिरंगा लहराए,हर दिल में तिरंगा बस जाए।अपना भारत प्राणों से प्यारा,हर लब यह गीत गुनगुनाए। तीन रंगों की छटा निरालीधरती से गगन तक छा जाए।तिरंगे की विराटता में,सारा जग समा जाए।उस दिव्य भाव को छू लें,जो देश प्रेम की राह दिखाए।हर घर में तिरंगा लहराए,हर दिल में तिरंगा बस जाए। रंग केसरिया … Read more

राष्ट्रध्वज तिरंगे पर प्रो. अरूण की दो कविताएं। Poem on tiranga, poem on independence day,Prof.Nand Kishor Dhaundiyal Arun

राष्ट्रध्वज तिरंगा हमारी आन, बान और शान का प्रतीक है। इस पोस्ट में हम प्रस्तुत कर रहे हैं, सभी देशवासियों के लिए वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. नंद किशोर ढौंडियाल ‘अरूण’ की राष्ट्रध्वज तिरंगे पर लिखित दो विशेष कविताएं….

बचपन पर एक बेहतरीन कविता…निश्छल बचपन है सम ईश्वर

बचपन जीवन का वह दौर होता है जो मन के किसी कोने में हमेशा छुपा होता है। जीवन को आनदं और सहजता से भर देता है। जीवन में ऊर्जित होकर कोई कार्य सम्पन्न करना हो तो स्वयं के भीतर ईश्वरीय वरदान अर्थात बचपन जिंदा रखे।

” निश्छल बचपन है सम ईश्वर ”

न कोई उलझन यहाँ ,
दिमाग़ों के तार में।
हर मुश्किल के हल यहाँ,
सरल-सहज व्यवहार में।

शरारतें यहाँ कोई साजिश नहीं हैं।
यह तो मासूमियत की चरम स्थिति है।

बुद्धि के खेल में कहाँ तृप्ति है?
नादानियों में भी छुपी जिंदगी है।

झांक कर देखो स्वयं के भीतर,
जिंदा है अभी भी बचपन का मंजर।

पिता हमारे जीवन का निर्माता है, दुनिया के हर पिता को समर्पित यह कविता हो रही है वायरल: पढ़ें लक्ष्मी बिष्ट की भावपूर्ण रचना

लक्ष्मी बिष्ट समग्र शिक्षा उत्तराखंड में देहरादून जनपद के जिला समन्वयक पद पर कार्यरत हैं। सोशल मीडिया और पत्र- पत्रिकाओं में सक्रिय लेखन के लिए चर्चित हैं। कविता लेखन हेतु कई मंचों पर सम्मानित – संपादक  पिता नींव रखता है,स्तंभ बनाता है।कितनी मेहनत सेहमारा जीवन बनाता है।संघर्ष की  पथरीली जमींपर मखमल बिछाता है।धरती पर चलता है,आसमान ढोता है।कुटुम्ब … Read more

मात्र एक दिवस मना लेने से पर्यावरण का सरंक्षण नहीं हो सकता, प्रदूषण पर रोक लगाकर पर्यावरण को बचाने के सतत प्रयास करने होंगें : इस चिंता को व्यक्त करती एक संवेदनशील काव्यात्मक अपील

फोटो- साभार (गूगल) प्रदूषण की बढ़ती माया   दुनियावालों देख लो तुम, प्रदूषण की बढ़ती माया।  हरी–भरी धरती को निगलने प्रदूषण रूपी राक्षस आया ।॥   चारों ओर बिखरा है कूड़ा , प्लास्टिक के लगे हैं ढेर | भीषण गर्मी, बाढ़ भयानक, मौसम के भी बदले फेर ।।   नहरें, पोखर, तालाब सूखते, सिकुड़ रहे नदियों के किनारे।  पिघल रहे … Read more

धनतेरस पर विशेष

धनतेरस पर मातु लक्ष्मी,  , भले ही धन मत बरसाओ। पर किसी  गरीब को मातेकभी भूखे पेट ना तरसाओ। ना मिले किसी को नए गहने,ना नई  किसी को कार मिले।पर पेट पालने को अपना,मां सब को रोजगार मिले।। ना जलें पटाखों की लड़ियाँ,न चलें भले ही फुलझड़ियाँ।पर मिटा दो माँ सबके जीवन से,दुःख और लाचारी … Read more

कुछ लिखा जाता नहीं

मायने अच्छाई के इस शहर में कुछ और हैं, अच्छा है कि मुझको यहां अच्छा कहा जाता नहीं. सोचता हूं कि चुप रहूं मैं भी उन सबकी तरह, पर देखकर रंगे जमाना चुप रहा जाता नहीं दर्द अपना हो तो मैं चुपचाप सह लूंगा उसे, दर्द बेबस आदमी का पर सहा जाता नहीं… भूख से … Read more

कलम मेरी खामोश नहीं

                           कलम मेरी खामोश नहीं, ये लिखती नई कहानी है। इसमें स्याही के बदले मेरी, आंखों वाला पानी है।। सृजन की सरिता इससे बहती झूठ नहीं ये सच है कहती। जीवन के हर सुख-दुख में ये, कलम सदा संग मेरे रहती॥ ये मेरी सहचरी,मेरी सहेली , मेरे … Read more