पिता
नींव रखता है,
स्तंभ बनाता है।
कितनी मेहनत से
हमारा जीवन बनाता है।
संघर्ष की पथरीली जमीं
पर मखमल बिछाता है।
धरती पर चलता है,
आसमान ढोता है।
कुटुम्ब का वो वट वृक्ष,
चट्टान सा दृढ होता है।
सारे कष्ट खुद सहता है,
हर मुश्किल से खुद ही लड़ता है।
भावनाओं की नदी से
नौका पार कराता है।
बच्चों की खुशियों की खातिर,
खुद कठोर सच में जीता है।
जिसके साये में सुरक्षित होकर,
मां की ममता को विस्तार मिलता है।
वो हम सबके जीवन में
नभ सा छा जाता है।
इस क्षितिज के अंतिम छोर
तक बस वही नजर आता है।
वो पिता है।
वो पिता है।
स्तंभ बनाता है।
कितनी मेहनत से
हमारा जीवन बनाता है।
संघर्ष की पथरीली जमीं
पर मखमल बिछाता है।
धरती पर चलता है,
आसमान ढोता है।
कुटुम्ब का वो वट वृक्ष,
चट्टान सा दृढ होता है।
सारे कष्ट खुद सहता है,
हर मुश्किल से खुद ही लड़ता है।
भावनाओं की नदी से
नौका पार कराता है।
बच्चों की खुशियों की खातिर,
खुद कठोर सच में जीता है।
जिसके साये में सुरक्षित होकर,
मां की ममता को विस्तार मिलता है।
वो हम सबके जीवन में
नभ सा छा जाता है।
इस क्षितिज के अंतिम छोर
तक बस वही नजर आता है।
वो पिता है।
वो पिता है।
लक्ष्मी बिष्ट
जिला समन्वयक,समग्र शिक्षा
देहरादून, उत्तराखंड
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भावपूर्ण कविता।
सुन्दर
Bahuguna j aapka karya sarahniya hai aur sabhi kavitayen dil ko chhune wali hai