सोचने पर मजबूर कर देगी विरेंद्र नौडियाल की ये कविता… हम गोल गोल घूमे
हम गोल गोल घूमे, गूगल हो गए…लहलहाती फसलें हमारी नस्लेंमाटी की महक पंक्षियों की चहकबरगद की छांव वो चौपाल चबूतरेहम गोल गोल घूमे, गूगल हो गए…साग-सब्जी का स्वाद, गोबर की खादधारों स्रोतों का पानी, अल्हड़ जवानीखेतों की मेहनत वो रोटी की जुगतहम गोल गोल घूमे, गूगल हो गए…हुलेरों का टोला रीति रिवाजों का मेलाहक्कारों की … Read more