kya nam dun| क्या नाम दूँ : तनुज पंत ‘अनंत ‘ की भावपूर्ण कविता
तुम जो गुज़री हो
सरसराती पवन सी
हृदय स्पंदित करती
प्रकाश पुंज सी रेखा खींचती,
मन चाहता है
तुम्हें सम्मान दूँ , परन्तु
किस नाम से पुकारूँ तुम्हें
क्या नाम दूँ ?
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तुम जो गुज़री हो
सरसराती पवन सी
हृदय स्पंदित करती
प्रकाश पुंज सी रेखा खींचती,
मन चाहता है
तुम्हें सम्मान दूँ , परन्तु
किस नाम से पुकारूँ तुम्हें
क्या नाम दूँ ?
जीवन कितनों का है संवारा,
तुमने अपना विद्या-बल देकर ।
वीर शिवा, राणा और चन्द्रगुप्त,
बने महान तव संबल पाकर
तुम्हीं कहती थीं
सागर सा गहरा
आकाश सा विस्तृत
भूमि सा पवित्र
है हमारा रिश्ता,
फिर क्यों करे
हम कल की चिन्ता