धूमिल अक्षर : एक संवेदनशील प्रेम कविता
तुम्हीं कहती थीं
सागर सा गहरा
आकाश सा विस्तृत
भूमि सा पवित्र
है हमारा रिश्ता,
फिर क्यों करे
हम कल की चिन्ता
ज्ञान,विज्ञान,साहित्य,समाचारों की ई-पत्रिका
तुम्हीं कहती थीं
सागर सा गहरा
आकाश सा विस्तृत
भूमि सा पवित्र
है हमारा रिश्ता,
फिर क्यों करे
हम कल की चिन्ता
हर घर में तिरंगा लहराए,हर दिल में तिरंगा बस जाए।अपना भारत प्राणों से प्यारा,हर लब यह गीत गुनगुनाए। तीन रंगों की छटा निरालीधरती से गगन तक छा जाए।तिरंगे की विराटता में,सारा जग समा जाए।उस दिव्य भाव को छू लें,जो देश प्रेम की राह दिखाए।हर घर में तिरंगा लहराए,हर दिल में तिरंगा बस जाए। रंग केसरिया … Read more
राष्ट्रध्वज तिरंगा हमारी आन, बान और शान का प्रतीक है। इस पोस्ट में हम प्रस्तुत कर रहे हैं, सभी देशवासियों के लिए वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. नंद किशोर ढौंडियाल ‘अरूण’ की राष्ट्रध्वज तिरंगे पर लिखित दो विशेष कविताएं….
बचपन जीवन का वह दौर होता है जो मन के किसी कोने में हमेशा छुपा होता है। जीवन को आनदं और सहजता से भर देता है। जीवन में ऊर्जित होकर कोई कार्य सम्पन्न करना हो तो स्वयं के भीतर ईश्वरीय वरदान अर्थात बचपन जिंदा रखे।
” निश्छल बचपन है सम ईश्वर ”
न कोई उलझन यहाँ ,
दिमाग़ों के तार में।
हर मुश्किल के हल यहाँ,
सरल-सहज व्यवहार में।
शरारतें यहाँ कोई साजिश नहीं हैं।
यह तो मासूमियत की चरम स्थिति है।
बुद्धि के खेल में कहाँ तृप्ति है?
नादानियों में भी छुपी जिंदगी है।
झांक कर देखो स्वयं के भीतर,
जिंदा है अभी भी बचपन का मंजर।
लक्ष्मी बिष्ट समग्र शिक्षा उत्तराखंड में देहरादून जनपद के जिला समन्वयक पद पर कार्यरत हैं। सोशल मीडिया और पत्र- पत्रिकाओं में सक्रिय लेखन के लिए चर्चित हैं। कविता लेखन हेतु कई मंचों पर सम्मानित – संपादक पिता नींव रखता है,स्तंभ बनाता है।कितनी मेहनत सेहमारा जीवन बनाता है।संघर्ष की पथरीली जमींपर मखमल बिछाता है।धरती पर चलता है,आसमान ढोता है।कुटुम्ब … Read more
फोटो- साभार (गूगल) प्रदूषण की बढ़ती माया दुनियावालों देख लो तुम, प्रदूषण की बढ़ती माया। हरी–भरी धरती को निगलने प्रदूषण रूपी राक्षस आया ।॥ चारों ओर बिखरा है कूड़ा , प्लास्टिक के लगे हैं ढेर | भीषण गर्मी, बाढ़ भयानक, मौसम के भी बदले फेर ।। नहरें, पोखर, तालाब सूखते, सिकुड़ रहे नदियों के किनारे। पिघल रहे … Read more
धनतेरस पर मातु लक्ष्मी, , भले ही धन मत बरसाओ। पर किसी गरीब को मातेकभी भूखे पेट ना तरसाओ। ना मिले किसी को नए गहने,ना नई किसी को कार मिले।पर पेट पालने को अपना,मां सब को रोजगार मिले।। ना जलें पटाखों की लड़ियाँ,न चलें भले ही फुलझड़ियाँ।पर मिटा दो माँ सबके जीवन से,दुःख और लाचारी … Read more
मायने अच्छाई के इस शहर में कुछ और हैं, अच्छा है कि मुझको यहां अच्छा कहा जाता नहीं. सोचता हूं कि चुप रहूं मैं भी उन सबकी तरह, पर देखकर रंगे जमाना चुप रहा जाता नहीं दर्द अपना हो तो मैं चुपचाप सह लूंगा उसे, दर्द बेबस आदमी का पर सहा जाता नहीं… भूख से … Read more