
हे शिक्षक तुम संस्कृति वाहक, तुम ही तो राष्ट्र-निर्माता हो। ज्ञान का दीप जलाने वाले, तुम मानव भाग्य विधाता हो ।। चाणक्य, द्रोण और कृपाचार्य के रूप में अमर तुम्हारा इतिहास। तुम चाहो तो समाज बदल दो, करके केवल एक लघु प्रयास॥
जीवन कितनों का है संवारा, तुमने अपना विद्या-बल देकर । वीर शिवा, राणा और चन्द्रगुप्त, बने महान तव संबल पाकर ।। भवनों की ऊँचाई को नापने वाले, देखते नहीं नींव के पत्थर को । ऐसे ही नहीं जान सकता कोई तेरे अति विराट शक्ति स्तर को॥
किंतु नींव के पत्थर पर ही, अडिग खड़ा होता है ताजमहल। ऐसे ही तुम पर समाज टिका है, कर्तव्य पथ पर जब हो अविचल ।। ........प्रदीप बहुगुणा 'दर्पण'