गांधी तेरे पदचिन्हों को, वक्त ने मिटा डाला था,
आज तेरी स्मृतियों का भी, हमने कत्ल कर डाला है।
तुमने पाठ पढ़ाया अहिंसा का
हम हिंसा के पुजारी बन बैठे,
तुमने गरल पिया क्रोध का
हम रक्तपिपासु बन बैठे।
तुमने विश्व पिरोया एक सूत्र मे
हम गज भर भूमि को लड़ बैठे,
तुमने सन्देश दिया भाईचारे का
हम हिन्दू-मुस्लिम बन बैठे।
भाषा, मजहब, सम्प्रदाय का हमने आडम्बर रच डाला है।
आज तेरी स्मृतियों का भी हमने कत्ल कर डाला है।।
तुमने तजे वस्त्र औरों के लिये
और हम दुःशासन बन बैठे,
तुमने सपना देखा राम-राज्य का
हम सब रावण बन बैठे।
तुम थे मानवता के रक्षक
और हम भक्षक बन बैठे,
तुमने आलोकित किया जिस भूखंड को
हम उस पर कालिख बन बैठे।
वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को हमने विस्मृत कर डाला है,
आज तेरी स्मृतियों का भी हमने क़त्ल कर डाला है।
खून बहा कहीं सिंदूर बहा
कहीं जली आवरू की होली,
छीन छीन कर मेंहदी का रंग
सजाते रहे हम रंगोली।
पश्चाताप नही होता हमको
हम भावशून्य हो बैठे है,
गांधी तेरे देश के इंसा
अब हैवान बन बैठे है।
इस मजहबी उन्माद मे तेरा ही घर जला डाला है,
आज तेरी स्मृतियों का भी हमने कत्ल कर डाला है।
... पंकज बिजल्वाण
(पंकज बिजल्वाण माध्यमिक शिक्षा विभाग उत्तराखंड में भौतिकी प्रवक्ता पद पर कार्यरत हैं। आपकी कविताएं बेहद संवेदनशील होती हैं, जी हमेशा मन को झकझोर देने वाले प्रश्न खड़े करती हैं।)