डॉ उमेश चमोला की पुस्तक गडोलि का हुआ विमोचन, शेक्सपियर के दस नाटकों का है गढ़वाली कथांतरण

विश्वविख्यात नाटककार और साहित्यकार विलियम शेक्सपियर के दस प्रसिद्ध नाटकों के कथानक पाठक अब गढ़वाली भाषा में सरल कहानियों के रूप में पढ़ पाएंगें। उत्तराखंड के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ उमेश चमोला ने शेक्सपियर के प्रसिद्ध दस नाटकों के गढ़वाली भाषा में कथांतरण पर आधारित पुस्तक ‘गडोलि ‘ का आज देहरादून में विमोचन हुआ।

Doctor umesh chamola book gadoli, based on Shakespeare's famous dramas launched in dehradun

पुस्तक के प्रकाशक काव्यांश प्रकाशन और अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एक समारोह में इस पुस्तक का विमोचन जनपद देहरादून के मुख्य शिक्षा अधिकारी प्रदीप कुमार रावत, डायट देहरादून के प्राचार्य व साहित्यकार राकेश जुगरान, गढ़वाली भाषा के शोधकर्ता एवं शब्दकोष लेखक रमाकांत बेंजवाल, प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ नंदकिशोर हटवाल द्वारा किया गया।

विमोचन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि बोलते हुए जनपद देहरादून के मुख्य शिक्षा अधिकारी प्रदीप कुमार रावत ने कहा कि जिस प्रकार किसी भी जैव प्रजाति का विलोपन होने से जैव विविधता पर इसका प्रभाव पड़ता है, उसी प्रकार किसी भी भाषा के लोप होने से हमारी सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता पर दुष्प्रभाव पड़ता है। प्रत्येक भाषा स्थानीय परिवेश की इकोलॉजी का हिस्सा है, इसलिए एक जागरूक मनुष्य होने के नाते हम सब की जिम्मेदारी है कि हम अपनी लोक भाषाओं का संरक्षण करें।

पुस्तक के बारे में जानकारी देते हुए पुस्तक के लेखक डॉक्टर उमेश चमोला ने बताया कि विश्व प्रसिद्ध साहित्य को गढ़वाली भाषा में उपलब्ध कराने के दृष्टिगत वर्ष 2020 में उनके द्वारा लियो टालस्टाय की 16 कहानियों का अनुवाद गढ़वाली भाषा में ‘छः फुटै जमीन’ नामक किताब के रूप में प्रकाशित करवाया गया था। जिसकी सफलता और पाठकों की सराहना के प्रतिफल के रूप में उन्हें शेक्सपियर के नाटकों को कथांतरित कर गढ़वाली भाषा में प्रकाशित करने की प्रेरणा मिली। शेक्सपियर के जूलियस सीजर, ओथेलो, हैमलेट, मर्चेंट ऑफ वेनिस जैसे 10 प्रसिद्ध नाटकों का गढ़वाली भाषा में कहानियों के रूप में रूपांतरण कर इस पुस्तक में प्रकाशन किया गया है।

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डायट प्राचार्य एवं साहित्यकार राकेश जुगरान ने कहा कि देश की सीमाओं से परे किसी विदेशी भाषा के जाने पहचाने लेखक की कृतियों को क्षेत्रीय भाषा में प्रस्तुत करना एक विशिष्ट कौशल है। वर्तमान में भारत सरकार द्वारा लागू की गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भी क्षेत्रीय भाषाओं में वैश्विक साहित्य के अनुवाद के महत्व को रेखांकित करती है । आम आदमी के लिए साहित्य को सरल रूप में प्रस्तुत करने के लिए लेखक साधुवाद के पात्र हैं।

गढ़वाली भाषा के प्रचार प्रसार और संरक्षण के लिए कार्य करने वाले विद्वान शोधकर्ता और गढ़वाली हिंदी शब्दकोश के लेखक रमाकांत बेंजवाल ने पुस्तक के लेखक और प्रकाशक की सराहना करते हुए कहा कि लोक भाषा संरक्षण के लिए पाठकों तक लोकभाषाओं में लिखे विश्वस्तरीय साहित्य को पाठकों तक पहुंचाना एक बड़ी उपलब्धि है।

प्रसिद्ध साहित्यकार और संस्कृतिकर्मी डा. नंदकिशोर हटवाल ने कहा कि भाषा और बोली कोई अलग-अलग अवधारणाएं नहीं है। गढ़वाली को भाषा न मानकर बोली के रूप में देखा जाना बिल्कुल गलत है। गढ़वाली भाषा इतनी समृद्ध भाषा है कि यह किसी भी विश्वस्तरीय भाषा के सामने चुनौती प्रस्तुत कर सकती है। उन्होंने कहा कि किसी भी भाषा की ताकत को मापने का एक मानदंड यह भी है कि उस भाषा में अन्य भाषाओं से अनुदित कितना साहित्य उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त लोकगीत, लोककथा आदि भी भाषा की शक्तियों में शामिल होते हैं, इसलिए प्रचुर मात्रा में गढ़वाली भाषा में मौलिक एवं अनुदित साहित्य के साथ-साथ लोकसाहित्य को उपलब्ध कराना भी हमारी जिम्मेदारी बन जाती है।

पुस्तक के प्रकाशक काव्यांश प्रकाशन के संस्थापक और संचालक प्रबोध उनियाल ने बताया कि उनका प्रकाशन उत्तराखंड के प्रमुख साहित्यकारों के स्तरीय साहित्य को प्रकाशित करने की दिशा में प्रयास कर रहा है। उन्होंने बताया कि इस पुस्तक लेखक डॉ उमेश चमोला का अनेक वर्षों का लेखन, संपादन और अनुवाद का अनुभव है। इनकी कृतियां विश्वविद्यालय एवं विद्यालय स्तरीय छात्रों के पाठ्यक्रम में शामिल हैं। काव्यांश प्रकाशन द्वारा सद्यप्रकाशित डा. चमोला की यह पुस्तक गढ़वाली भाषा के पाठकों को अवश्य पसंद आएगी। उन्होंने आयोजन में सहयोग के लिए अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के पदाधिकारियों , उपस्थित साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों का आभार व्यक्त किया।

कार्यक्रम का संचालन साहित्यकार ,पत्रकार एवं अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के सदस्य अशोक कुमार मिश्रा ने किया।

इस अवसर पर कथाकार शूरवीर सिंह रावत, साहित्यकार डॉ सत्यानंद बडोनी, एस पी नौटियाल,प्रदीप बहुगुणा ‘ दर्पण’, मोहन पाठक,डॉक्टर उषा कटियार, डा. मनोज कुमार शुक्ला,सोहन सिंह नेगी, सुनील भट्ट,राजेश खत्री मोहन प्रसाद डिमरी, प्रतिभा कटियार, गोपाल घुगत्याल, रविंद्र जीना,नितिन कुमार, प्रिया गुसांई सहित कई लेखक,साहित्यकार और प्रबुद्धजन उपस्थित थे।

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