हिंदी दिवस पर विशेष कविता : भारत के माथे की बिंदी

फोटो -साभार (इंटरनेट)

भारत के माथे की बिंदी,  हिंदी है हम सबकी  हिंदी । 


जिससे अपनी संस्कृति ज़िंदी, हिंदी है वो सबकी  हिंदी॥ 
भारत के माथे की बिंदी…
हिंदी से विज्ञान बना है, हिंदी में इतिहास पला है। 
इसकी पावन ऊर्जा से ही संस्कृति का विहान चला है।।  
तबलों की थापें हैं, इसमें वीणा के स्वर इसमें समाये । 
सामगान और वेद ऋचायेँ , हिंदी में ही समझी जायेँ ॥
ज्ञान और विज्ञान की कुंजी, हिंदी है हम सबकी  हिंदी ।
भारत के माथे की बिंदी…
बंगाली हो या गुजराती , हिंदी हम सबकी भाषा है। 
पंजाबी हो या मदरासी, हिंदी अब सबकी आशा है॥ 
उत्तर- दक्षिण, पूरब- पश्चिम, एका की ये परिचायक है।
एक सूत्र में बांधे सबको,  भारत की उन्नायक है॥ 
कहे मराठी और कहे सिंधी , हिंदी है हम सबकी  हिंदी। 
भारत के माथे की बिंदी…
मैकाले के पुत्रों को ये बात समझ में क्यों न आती। 
अपने हिंदुस्तान में हिंदी, खून के आँसू क्यों बहाती॥ 
लानत भेजूँ उन पर मैं जो, हिंदी बोलने में शरमाते। 
व्यर्थ हैं वो विद्यालय जिनमें, हिंदी भाषी पीटे जाते॥ 
उड़ा दो उनकी चिंदी-चिंदी, हिंदी है हम सबकी  हिंदी । 
भारत के माथे की बिंदी…
                            …….. प्रदीप बहुगुणा ‘दर्पण ‘

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17 thoughts on “हिंदी दिवस पर विशेष कविता : भारत के माथे की बिंदी”

  1. मैकाले के पुत्रों को ये बात समझ में क्यों न आती।
    अपने हिंदुस्तान में हिंदी, खून के आँसू क्यों बहाती॥
    लानत भेजूँ उन पर मैं जो, हिंदी बोलने में शरमाते।
    व्यर्थ हैं वो विद्यालय जिनमें, हिंदी भाषी पीटे जाते॥
    बहुत सही
    कमबख्त कुछ लोग समझते ही नहीं, खाते हिंदी की है और बातें अंग्रेजी में करते हैं, बहुत दोगलापन है

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  2. बहुत अच्छी रचना है बहुगुणा जी। एक कवि की कलम में ही दम है जो पूरे समाज को बदलने का दम रखता है। आप फिजिक्स के प्रवक्ता होते हुए भी हिंदी भाषा पर एक मजबूत पकड़ रखते हैं जो कि हिंदी भाषा के प्रति आपके प्रेम को दर्शाता है।

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