फोटो- साभार (गूगल) |
प्रदूषण की बढ़ती माया
दुनियावालों देख लो तुम,
प्रदूषण की बढ़ती माया।
हरी–भरी धरती को निगलने
प्रदूषण रूपी राक्षस आया ।॥
चारों ओर बिखरा है कूड़ा ,
प्लास्टिक के लगे हैं ढेर |
भीषण गर्मी, बाढ़ भयानक,
मौसम के भी बदले फेर ।।
नहरें, पोखर, तालाब सूखते,
सिकुड़ रहे नदियों के किनारे।
पिघल रहे हैं हिमनद सारे,
सूख रहे कुँए और धारे ॥
भोजन, पानी, हवा है दूषित,
तरह–तरह के बढ़ते रोग |
कैंसर जैसे महारोग से ,
मर जाते कितने ही लोग ॥
निकल रही जहरीली गैसें,
ओजोन परत में होता छेद।
आँख मूंदकर बैठा मानव,
नहीं इसे बिल्कुल भी खेद ॥
समय आ गया, संकल्प करें हम,
पर्यावरण को बचायेंगें ।
प्रदूषण पर रोक लगाकर हम,
धरती को स्वर्ग बनायेंगे॥
…. प्रदीप बहुगुणा ‘दर्पण’
#प्रदूषणपरकविता #पर्यावरणदिवस
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मेरी एक पुरानी कविता से…
मैं सुन रहा हूं आहट
यदि यही हाल रहा तो
अगली सदी में
कुछ मानव बचे होंगे
वृक्षों की छाल लपेटे
सिंधु तट पर
मिट्टी के ठीकरे
पाथ रहे होंगे
एक और विनाश की
प्रस्तावना लिख रहे होंगे
@ प्रदूषण की बढ़ती माया… बहुत सही.
धन्यवाद
Bahut badiya 👏