शिक्षा निदेशक से मिले शिक्षक :ज्ञापन सौंपकर की उत्तराखंड की द्वितीय राजभाषा के संबंध में बड़ी मांग

 उत्तराखंड के माध्यमिक विद्यालयों में CBSE पैटर्न लागू होने के बाद से अध्यापकों के विषयवार सृजित पदों के मामले में भारी विसंगतिया उत्पन्न हो गई हैं। काफी समय बीत जाने के बाद भी इस दिशा में कोई पहल होती नजर नहीं आ रही है। कला तथा वाणिज्य जैसे विषय हाईस्कूल में वैकल्पिक विषयों के रूप में सम्मिलित किए गए हैं, इन विषयों के प्राप्तांकों को परीक्षाफल में भी नहीं जोड़ा जाता है, किन्तु विद्यालयों में इनके पद सृजित हैं,  जिन पर नई भर्तियाँ भी की जाती हैं। वहीं दूसरी ओर  उत्तराखंड की द्वितीय राजभाषा संस्कृत और गृह विज्ञान जैसे विषय हाईस्कूल स्तर पर मुख्य विषय होते हैं, जिनके प्राप्तांकों के आधार पर  परीक्षाफल तैयार किया जाता है, किन्तु विडम्बना है, कि अधिकांश विद्यालयों में इन विषयों के पद  ही सृजित नहीं हैं, जिससे इन विषयों का शिक्षण प्रभावित होना स्वाभाविक है।  

              इसी चिंता को लेकर  उत्तराखंड हिन्दी संस्कृत शिक्षण मंच  से जुड़े शिक्षकों ने निदेशक माध्यमिक शिक्षा श्रीआर. के. कुँवर से मुलाक़ात कर उन्हें अपनी मांगों का ज्ञापन सौंपा। उन्होने कहा कि उत्तराखण्ड सरकार द्वारा वर्ष 2010 में देववाणी “संस्कृत” को द्वितीय राजभाषा के रूप में मान्यता प्रदान की गई है, जो कि राज्य के लिए गौरवपूर्ण है। राज्य के सभी माध्यमिक विद्यालयों में कक्षा 6 से 8 तक संस्कृत अनिवार्य विषय के रूप में, कक्षा-9 व 10 तक द्वितीय भाषा के रूप में अंग्रेजी के विकल्प में अथवा छठवें वैकल्पिक विषय के रूप में तथा कक्षा-11 व 12 में द्वितीय भाषा / अंग्रेजी के विकल्प के रूप में पूर्व से ही पाठ्क्रम में लागू किया गया है। 

 वर्ष 2009 व 2013 तथा 2019 से पूर्व एल०टी० संवर्ग में हिन्दी व संस्कृत के पृथक-पृथक दो पद होते थे ,परन्तु मात्राकरण में संस्कृत पद को हटा दिया गया जो बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है तथा असंगत विषयाध्यापकों के द्वारा संस्कृत जैसे महान विषय का अध्यापन करवाया जा रहा है।  
राज्य में इण्टर स्तर पर वर्ष 2007 से पहले 10 या इससे अधिक पद तथा वर्ष 2007 से केवल 9 ही पद ही सृजित हो रहे हैं। जिसमें चार पद विज्ञान के शेष 5 पदों पर अंग्रेजी, हिन्दी, अर्थशास्त्र व अन्य दो पदों पर भूगोल, राजनीति विज्ञान, इतिहास, कला, आदि कलावर्गीय विषयों के पद सृजित होते हैं जिस कारण  संस्कृत प्रवक्ता पद सृजित नहीं हो पा रहे हैं। 
राज्य के अधिकांश विद्यालयों में एल०टी० संस्कृत एवं प्रवक्ता संस्कृत शिक्षकों के पद ही सृजित नहीं हैं। इस प्रकार विषय विशेषज्ञ शिक्षकों के अभाव में कक्षा 6 से 12 वीं तक संस्कृत शिक्षण का कार्य असंगत विषयाध्यापकों के द्वारा करवाया जा रहा है। जो संस्कृत  शिक्षण की उपयोगिता और गुणवत्ता के लिए चिंता का विषय है। 
          शिक्षण मंच ने यह मांग की, कि उत्तराखण्ड के सभी राजीव गांधी नवोदय विद्यालयों तथा मॉडल इण्टरमीडिएट कालेजों एवं प्रस्तावित अटल आदर्श इण्टरमीडिएट कालेजों सहित सभी राजकीय और अशासकीय मान्यता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में “संस्कृत” के अध्ययन-अध्यापन की समुचित व्यवस्था हेतु एल०टी० और प्रवक्ता संवर्ग में संस्कृत शिक्षकों के संस्कृतपद सृजन एवं नियुक्ति प्रक्रिया हेतु अविलम्ब कार्यवाही की जाए।   
       उत्तराखंड हिन्दी संस्कृत शिक्षण मंच  के प्रतिनिधि मण्डल में बाला दत्त शर्मा , डॉ. हरिशंकर डिमरी और डॉ. दीपक नवानी सम्मिलित थे। 
            
                   
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4 thoughts on “शिक्षा निदेशक से मिले शिक्षक :ज्ञापन सौंपकर की उत्तराखंड की द्वितीय राजभाषा के संबंध में बड़ी मांग”

  1. अति सुन्दर संस्कृत से पढ़ा नौजवान बेरोजगार घूम रहा है। संस्कृत का lt और prwakta में पद। होना चाहिए।

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