राष्ट्रध्वज तिरंगे पर प्रो. अरूण की दो कविताएं। Poem on tiranga, poem on independence day,Prof.Nand Kishor Dhaundiyal Arun

संपूर्ण भारतवर्ष आजकल आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। स्वतंत्रता के 75 वर्षों की इस यात्रा के पूर्ण होने पर हर घर तिरंगा अभियान चलाया जा रहा है। राष्ट्रध्वज तिरंगा हमारी आन, बान और शान का प्रतीक है। इस पोस्ट में हम प्रस्तुत कर रहे हैं, सभी देशवासियों के लिए वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. नंद किशोर ढौंडियाल ‘अरूण’ की राष्ट्रध्वज तिरंगे पर लिखित दो विशेष कविताएं….

राष्ट्रध्वज

राष्ट्रध्वज तू! प्राण है इस देश का,
ध्वज नहीं तू! राष्ट्र का सम्मान है।


शान है तू! देश का सम्मान है।
राष्ट्रकुल का दिव्य एक निशान है।
देश का तू! एक स्वस्तिक चिन्ह है। राष्ट्र का तू! प्राण एक अभिन्न है। सुदृढ़ अक्षर क्रान्ति का गुणगान है। ध्वज नहीं तू राष्ट्र का सम्मान है।


अंग है तेरे तिरंगे रंग जो।
चक्र का वैभव अतुल है संग जो । शक्ति-सौरभ सत्य के मानक सदा। हरित है सुख शस्य श्यामल सर्वदा । लक्ष्य है गति का, स्वयं गतिमान है। ध्वज नहीं तू! राष्ट्र का सम्मान है।

जहाँ भी फहरे वहीं यह देश है।
जहाँ भी लहरे प्रदेश स्वदेश है।
चिह्न गौरव का स्वयं शुभ नाम तू! एक पट में सिमटता निज धाम तू! सिद्धि साधन योग बल कल्याण है।
ध्वज नहीं तू! राष्ट्र का सम्मान है॥


सैन्य बल के साथ तू! बल पुँज है।
शान्ति के संग शान्ति का सित कुँज है।
विश्वजन समुदाय आत्म निवेश तू!
सकल सम्प्रभुतापरक सन्देश तू!
कोटि जनगणमन सु-दिव्य निशान है।
ध्वज नहीं तू! राष्ट्र का सम्मान है।


सिर कटे पर तू! कभी झुकता नहीं। युग रुके पर तू! कभी रुकता नहीं। सन्धि विग्रह का नवीन स्वरूप तू!
देश के उद्देश्य के अनुरूप तू!
है अमर जैसे कि अमृत पान है।
ध्वज नहीं तू! राष्ट्र का सम्मान है।

नमन मेरे राष्ट्रध्वज

हे धरा के पुत्र लहराते गगन!
नमन मेरे राष्ट्रध्वज ! तुमको नमन।

हे हिमालय के धवल उन्नत शिखर ! और गंगा नीर की चंचल लहर !
शस्य श्यामल इस धरा का रंग तू! शौर्य साहस त्याग का प्रसंग तू!


विश्व सम्मानित हमारे कीर्ति नमन मेरे राष्ट्रध्वज ! धन! तुमको नमन।


तू शहीदों का अमर बलिदान है!
और भारत देश का सम्मान है!
है किसानों का अमर रस बिन्दु तू! श्रमिकों के श्रम की पहचान है !


चक्र-युग नव क्रान्ति का सुन्दर चयन !
नमन मेरे राष्ट्रध्वज! तुमको नमन ।।


सर्व-धर्मी भाष्य का नव रूप तू!
है कला-संस्कृति का प्रतिरूप तू!
सर्व इच्छाशक्ति का प्रतीक तू!
सत्य मंत्रों की सहज नवलीक तू!


है हमारी अस्मिता का नव भवन।
नमन मेरे राष्ट्रध्वज ! तुमको नमन ॥

(ये कविताएं प्रो.अरुण की पुस्तक जननी और जन्मभूमि से ली गई हैं, जो हमारे राष्ट्रध्वज को समर्पित हैं। )

लेखक के बारे में :


प्रो. नंद किशोर ढौंडियाल ‘अरूण’ , डी. लिट. वरिष्ठ साहित्यकार हैं , जिनकी सौ से भी अधिक पुस्तकें साहित्य की अनेक विधाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं ।


संपर्क :

प्रोफेसर नन्दकिशोर ढौंडियाल ‘अरुण’

डी.लिट्.

‘अरूणोदय’

गढ़वाली चौक, ध्रुवपुर कोटद्वार पौड़ी गढ़वाल

उत्तराखंड ( भारत)

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