उत्तराखंड की भाषाओं के पक्ष में मातृभाषा एकांश धाद द्वारा 17 से 21फरवरी तक विभिन्न साहित्यिक गतिविधियों का आयोजन किया गया। इसमें अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 2025 के अवसर पर धाद संस्था देहरादून के फेसबुक लाइव पेज पर ऑनलाइन संवाद का आयोजन किया गया।

कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. नन्द किशोर ढौंडियाल और डॉ. उमेश चमोला ने भाग लिया। इस संवाद में लोक गाथा, लोक कथा और गढ़वाली कहानी के वर्तमान स्वरूप पर दोनों साहित्यकारों ने कार्यक्रम के संचालक मनोज भट्ट ‘गढ़वलि ‘ के द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर में अपनी बात रखी।
डॉ. ढौंडियाल ने अपने जीवन के प्रसंगों को साझा करते हुए कहा कि उनका बचपन ग्रामीण क्षेत्र में बीता। बचपन में वे दादी, नानी और बुजुर्गो से लोकगाथा, लोककथा, लोकगीत आदि सुना करते थे। उन्हें अनुभव हुआ कि ये विधाएँ ज्ञान और मनोरंजन की स्रोत हैं। वर्ष 1976 में कोटद्वार से प्रकाशित गढ़ गौरव पत्रिका में उनकी गढ़वाली में शार्दुलविक्रीड़ितम छंद में लिखी गढ़वंदना और प्राकृतिक सौंदर्य पर आधारित शिखरिणी छंद में लिखी रचना प्रकाशित हुई थी। इसके बाद उन्होंने गढ़वाली, हिन्दी और संस्कृत में लिखना शुरू किया। जब वे पाँचवीं में पढ़ते थे तब उन्हें रामचरितमानस याद थी। उन्होंने लोक गाथा के विभिन्न प्रकारों ऐतिहासिक, प्रेम गाथा, भूत -प्रेत, रण भूत गाथा पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि रामायण और महाभारत इन गाथाओं के स्रोत हैं। उन्होंने कहानियों में वर्तमान सन्दर्भ जोड़ने पर भी बल दिया।
साहित्यकार डॉ. उमेश चमोला ने कहा कि आज जब वे लोक कथाओं को लिखते हैं तो वे कल्पना करते हैं कि उनकी माता जी उन्हें कथाएँ सुना रही हैं और वे लिखते जाते हैं। उन्होंने अपने बचपन का किस्सा सुनाते हुए कहा कि एक बार उनके पिता जी मेले से जलेबी लाये थे, उन्होंने जलेबी के अख़बार से बने लिफाफे पर लिखी महात्मा गाँधी से सम्बंधित एक कविता को कॉपी में उतारकर शनिवार को होने वाली बाल सभा में सुनाया था, तब वे कक्षा चार के छात्र थे। उन्होंने कक्षा दस में अपनी लिखी राष्ट्रभक्तिपूर्ण कविता विद्यालय में आयोजित कवि सम्मेलन में सुनाई थी। उन्होंने बताया कि जब वे भाषण और वाद -विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लेते थे तो इन्हें अलंकारिक बनाने के लिए बीच -बीच में अपनी लिखी कविताओं की पंक्तियां भी सुनाते थे। उन्होंने लोक कथा के महत्व को स्पष्ट करते हुए कहा कि यह नवीन कहानियों के लिए आधारभूमि का कार्य करती हैं। उन्होंने वर्तमान समय में गढ़वाली में विज्ञान आधारित कहानियों को लिखने की आवश्यकता व्यक्त की।
इस कार्यक्रम में ऑनलाइन माध्यम से कई साहित्यकारों, धाद संस्था के पदाधिकारियों और गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति रही।