हम जानते हैं कि संस्कृत उत्तराखंड राज्य की द्वितीय राजभाषा के रूप में स्वीकृत की गई है किंतु इतना महत्वपूर्ण दर्जा मिलने के बावजूद भी राज्य में संस्कृत शिक्षण की स्थिति संतोषजनक नहीं है कुछ एक संस्कृत विद्यालयों को छोड़ दें तो उत्तराखंड सरकार द्वारा चलाए गए माध्यमिक विद्यालयों में से अधिकांश विद्यालयों में संस्कृत के पद ही स्वीकृत नहीं है इस विषय पर पढ़िए हिंदी संस्कृत शिक्षण मंच के डॉ. दीपक नवानी का विशेष आलेख….
उत्तराखंड राज्य और द्वितीय राजभाषा —
उत्तराखंड हिंदी संस्कृत शिक्षण मंच की ओर से राजकीय और अशासकीय माध्यमिक विद्यालयों में द्वितीय राजभाषा संस्कृत के एल टी और प्रवक्ता संवर्ग में शिक्षकों के पदसृजनपूर्वक नियुक्तियों की मांग निरन्तर की जाती रही है ।
गतवर्ष उत्तराखंड हिन्दी-संस्कृत शिक्षण मञ्च ने सभी जनपद संयोजकों-सह संयोजकों के द्वारा 13 मुख्यशिक्षाधिकारियों के माध्यम से माध्यमिक शिक्षा निदेशक महोदय को ज्ञापन प्रेषित किए थे। इस वर्ष भी हाल ही में शिक्षा निदेशक, एवं महानिदेशक महोदय को ज्ञापन दिए गए हैं। श्रीमान महानिदेशक महोदय ने शिष्टमंडल को अवगत कराया कि मञ्च की मांग के अनुरूप संस्कृत शिक्षकों के पदसृजनपूर्वक नियुक्तियों के प्रस्ताव को पूर्व में ही शासन को भेजा जा चुका है।
“मञ्च “जनवरी 2021 से लगातार संस्कृत शिक्षकों की मांग के सम्बन्ध में राज्य के अनेक विधायकों , मंत्रियों , शिक्षामंत्री और मुख्यमंत्रियों (मा0 त्रिवेन्द्र सिंह रावत , मा0 तीरथ सिंह रावत और मा0 पुष्कर सिंह धामी) सहित , राजकीय शिक्षक संघ , संस्कृत भारती, संस्कृत अकादमी , केन्द्रीय शिक्षामंत्री , प्रधानमंत्री को पत्र प्रेषित कर चुका है।
गतवर्ष 23 सितम्बर को माननीय मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने संस्कृत शिक्षकों की नियुक्तियों की घोषणा की थी। किन्तु शासनादेश निर्गत नहीं हुआ और विधानसभा चुनाव की घोषणा होने से मामला ठण्डे बस्ते में चला गया। संस्कृत शिक्षकों के नियुक्ति की घोषणा मात्र से संस्कृतानुरागियों में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई ; और एक के बाद एक लहर के मिलने से सरकार पुनः सत्ता में आ गई ।
संस्कृत शिक्षकों के पदसृजन में हो रहे बिलम्ब से निराश मञ्च सदस्यों ने पुनः अधिकारियों /माननीय विधायकजनो/मन्त्री/ मुख्यमन्त्री को ज्ञापन देकर द्वितीय राजभाषा संस्कृत की अवधारणा को पूर्ण करवाने हेतु मुहिम छेड़ी हुई है।
मञ्च सदस्यों और प्रदेश के संस्कृतप्रेमियों का मानना है कि सरकार को द्वितीय राजभाषा संस्कृत के शिक्षण कार्य हेतु शिक्षकों की पर्याप्त व्यवस्था करने के दृष्टिगत संस्कृत शिक्षकों के पद सृजित करने चाहिए।
सनद रहे ! उत्तराखंड सरकार संस्कृत विभाग और संस्कृत मंत्रालय के नाम पर जो भी विकास योजनाएं बना रही हैं , उसका लाभ केवल राज्य के संस्कृत विद्यालयोँ और महाविद्यालयों को भले ही मिल रहा हो , लेकिन “उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा परिषद” के 95 प्रतिशत विद्यालयोँ में एल टी और प्रवक्ता संस्कृत के शिक्षकों के पद ही सृजित नहीं हैं। अन्य असंगत विषयों के शिक्षकों द्वारा कामचलाऊ व्यवस्था के तौर पर संस्कृत पढ़ाई का रही है। जिससे छात्रों को न तो पूर्ण विषयज्ञान मिलता है और न संस्कृत के प्रति छात्रों की अभिरुचि उत्पन्न हो रही है।
संस्कृत एक वैज्ञानिक भाषा है , नासा के वैज्ञानिकों ने कम्प्यूटर के प्रयोग के लिए इसे सर्वाधिक उपयोगी पाया है। दुनियां के अनेक विकसित और विकासशील देशों में संस्कृत भाषा का अध्ययन – अध्यापन हो रहा है लेकिन भारत का वह राज्य जिसके राजनेताओं ने सर्वप्रथम संस्कृत को “द्वितीय राजभाषा” की मान्यता प्रदान की । किंतु संस्कृत शिक्षण की व्यवस्था हेतु पर्याप्त शिक्षकों की नियुक्ति किया जाना अभी शेष है।
उत्तराखंड के बाद हिमाचल प्रदेश देश का दूसरा राज्य है जिसने संस्कृत को द्वितीय राजभाषा के रूप में मान्यता दी किन्तु वहाँ माध्यमिक विद्यालयों में संस्कृत अनिवार्य विषय के रूप में पाठ्यक्रम में लागू है और शिक्षकों के पद सृजित और नियुक्तियाँ होते रहते हैं।
आशा है कि उत्तराखंड सरकार इस मांग का संज्ञान लेते हुए सकारात्मक कार्यवाही शुरू करेगी।
लेखक के बारे में:
डॉ दीपक नवानी, विद्यालयी शिक्षा उत्तराखंड में संस्कृत प्रवक्ता के पद पर कार्यरत हैं।तथा उत्तराखंड हिंदी संस्कृत शिक्षक मंच से जुड़े हैं।