शैक्षिक दखल पत्रिका के तीन दिवसीय राष्ट्रीय शैक्षिक ई – संवाद का आयोजन। पढ़ने लिखने की संस्कृति के विकास पर ज़ोर

‘शैक्षिक दखल’ पत्रिका द्वारा तीन दिवसीय ई संवाद कार्यक्रम का आयोजन  गूगल मीट व यू ट्यूब के माध्यम से दिनांक 1 से 3 जुलाई तक  किया गया। तीन दिवसीय बहुआयामी शैक्षिक दखल संवाद के अंतर्गत एक जुलाई से हर रोज़ दो घण्टे शिक्षक,शिक्षा और उससे जड़े सरोकारों से जुड़े विविध मुद्दों पर शैक्षिक दखल  संवाद में  नई शिक्षा नीति, जीवन निर्माण में पुस्तकालय की भूमिका, शैक्षिक दखल के कल, आज और कल के सफर पर संवाद और शैक्षिक दख़ल वेब पत्रिका विभिन्न  सत्र आयोजित किए गए । इस अवसर पर पढ़ने-लिखने की संस्कृति को बढ़ावा देती बाल पाठक प्रोत्साहन योजना के प्रथम अनुभवों को भी साझा किया गया । 

                    प्रतिदिन  दो बजकर पचपन मिनट से आरम्भ हुए इस वेबीनार के प्रथम दिवस,शुक्रवार 01 जुलाई 2022 को  सत्र का स्वागत वक्तव्य  एवं परिचय राजीव जोशी ने रखा। वक्ता का परिचय और भूमिका रेखा चमोली जी ने  प्रस्तुत की। मुख्य वक्ता दिल्ली विश्वविद्यालय, हिंदी विभाग की असि॰प्रोफेसर डॉ॰रश्मि रावत  ने  ‘नई शिक्षा नीति, संभावनाएँ व सीमाएँ’ विषय पर सारगर्भित व्याख्यान प्रस्तुत  किया । उन्होने कहा कि शिक्षा के निजीकरण पर रोक लगाकर शिक्षा के सार्वजनिक ढांचे को सशक्त बनाकर ही नई शिक्षा नीति के  उद्देश्यों की पूर्ति की जा सकती है।   इस सत्र पर आधारित प्रतिभागियों के प्रश्नों  का संकलन एवं प्रश्नकाल का संचालन प्रदीप बहुगुणा ने किया। पहले दिन का समापन और सार संक्षेप महेश बवाड़ी द्वारा किया गया।

 श्रृंखला का दूसरा दिन पुस्तकालय की भूमिका पर केंद्रित रहा । शैक्षिक दखल संवाद के दूसरे सत्र का संचालन करते हुए डॉ विवेक पांडेय ने शैक्षिक दखल के पुस्तकालय अभियान व पढ़ने-लिखने की सँस्कृति के विकास में शैक्षिक दखल की गतिविधियों का उल्लेख करते हुए कहा कि शैक्षिक दखल से जुड़े हुए शिक्षक अपने निजी पुस्तकालयों को सार्वजनिक करते हैं। अपने विद्यालयों में पुस्तकालयों का संचालन करते हैं। अपने विद्यार्थियों के साथ मिलकर आसपास के गांवों में पुस्तकालयों के संचालन की मुहिम चलाई जा रही है। इसी क्रम में शैक्षिक दखल के कार्यालय रानीबाग में दिनेश कर्नाटक व पिथौरागढ़ में महेश पुनेठा के निजी पुस्तकालय को सार्वजनिक किया जाना इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।

प्रख्यात साहित्यकार व सम्पादक प्रियदर्शन ने  अपने व्याख्यान में  अपने जीवन के शुरूवाती वर्षों में राम कृष्ण
मिशन व ब्रिटिश पुस्तकालय से मिली किताबों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि किताबें न होती तो उनका जीवन अधूरा, सपाट व नीरस होता। उन्होंने कहा कि किताबें जीवन मे अन्य महत्वपूर्ण चीजों की तरह ही हैं। उन्होने कहा कि खूब किताबें पढ़ें , लेकिन कोई भी समझ बनाने से पहले उन्हें तोल-मोल जरूर लें। किताबों का साथ हमेशा सुकून देता है, इस बात को सभी पाठक महसूस कर सकते हैं। 

अपने वक्तव्य से पहले प्रियदर्शन जी ने के पुस्तकालयों के अनुभवों को प्रस्तुत करते हुए शैक्षिक दखल के नए अंक का विमोचन भी किया। दिनेश कर्नाटक ने अपने अतिथि वक्ता का आभार प्रकट करते हुए वर्ष 2021 के बाल पाठक प्रोत्साहन योजना से पुरष्कृत पांचों पाठकों के नाम की घोषणा की, जिसके तहत खरसाडा, जिला टिहरी गढ़वाल से मोहित, नानकमत्ता पब्लिक स्कूल से कृति अटवाल, गायत्री, दीपिका व करणवीर को पुरुष्कार स्वरूप पुस्तकों का एक-एक सेट प्रदान किया गया। स्वाति मेलकानी ने पुरष्कृत पाठकों के अनुभवों को सुनते हुए उनके अध्ययन के आत्मविश्वास की सराहना की । युवाओं के अनुभवों से यह सीखने को मिला कि पुस्तकों से जुड़ने की प्रक्रिया किस तरह गति पकड़ती है। और बच्चे किताबों की दुनिया मे किस प्रकार विचरण करते हैं। 

अंत मे डॉ दिनेश जोशी ने सार संक्षेप प्रस्तुत करते हुए सुझाव दिया कि शैक्षिक दखल पत्रिका में बच्चों के पढ़ने-लिखने के अनुभवों को भी स्थान के दिया जाना चाहिए। 

रविवार 03 जुलाई को अंतिम दिवस  शैक्षिक दख़ल की यात्रा और भावी योजनाएँ विषय पर केन्द्रित रहा । इस सत्र का स्वागत व परिचय डॉ॰ निर्मल न्योलिया ने किया  । डॉ॰ महेश बवाड़ी ने शैक्षिक दख़लसमिति  का परिचय एवं अब तक की यात्रा पर पर विस्तृत रूप से अपनी बात रखी । चिन्तामणि जोशी ने  शैक्षिक दख़ल पत्रिका शुरुआत से लेकर वर्तमान तक की यात्रा पर प्रकाश डालते हुए बताया कि किस प्रकार विभिन्न विषयों पर आधारित बीस अंक अब तक प्रकाशित किए जा चुके हैं । इसी सत्र में बाल साहित्यकार मनोहर चमोली ने शैक्षिक दख़ल वेब पत्रिका की शुरुआत तथा आगामी  योजना पर अपनी बात रखी ।  अन्तिम दिवस के  मुख्य अतिथि समग्र शिक्षा,उत्तराखण्ड के उप राज्य परियोजना निदेशक आकाश सारस्वत ने अपने सम्बोधन में  शैक्षिक दखल टीम के प्रयासों की सराहना करते हुए पूर्व की भांति अपना सहयोग देने की बात कही । उन्होने कहा की संवेदनशील समाज के निर्माण की दिशा में इस तरह की पत्रिकाएँ सार्थक भूमिका निभा सकती हैं। आजकल सार्वजनिक शिक्षा और सरकारी शिक्षकों के बारे में नकारात्मकता का माहौल सुनियोजित तरीके से बनाया जा रहा है, ऐसे समय में हमारी चुनौतियाँ और अधिक बढ़ गई हैं।  तीसरे दिन के कार्यक्रम का समापन राजीव जोशी ने किया। पूरे कार्यक्रम में तकनीकी सहयोग विनोद बसेड़ा और शुभम पंत द्वारा दिया गया। 

 संवाद सत्रों  में चकमक पत्रिका के पूर्व संपादक राजेश उत्साही, बांदा से प्रमोद दीक्षित, इंद्रमणि भट्ट, मोहन चौहान, कमलेश अटवाल, रेखा चमोली, प्रदीप बहुगुणा, मनोहर चमोली, चिन्तामणि जोशी, स्वाति मेलकानी, डॉ अमिता प्रकाश ,दिनेश भट्ट, हिमांशु पांडे ‘मित्र’  सहित कई लेखकों , शिक्षकों, विद्यार्थियों व पाठकों  ने गूगल मीट, फेसबुक लाइव तथा यूट्यूब के माध्यम से प्रतिभाग किया । 

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