कलम मेरी खामोश नहीं, ये लिखती नई कहानी है।
इसमें स्याही के बदले मेरी, आंखों वाला पानी है।।
सृजन की सरिता इससे बहती
झूठ नहीं ये सच है कहती।
जीवन के हर सुख-दुख में ये,
कलम सदा संग मेरे रहती॥
ये मेरी सहचरी,मेरी सहेली , मेरे दिल की रानी है।
इसमें स्याही के बदले मेरी ,आंखों वाला पानी है।।
इसने जीना मुझे सिखाया,
सच से परिचय मेरा कराया।
जीवन की सच्चाई लिखाकर,
मुझे कवि इसने ही बनाया।।
मेरे आपके अनुभवों की, ये तस्वीर नूरानी है।
इसमें स्याही के बदले मेरी ,आंखों वाला पानी है।।
कलम कवि का है हथियार,
इसका है सब पर अधिकार।
जीवन के इस महासागर में,
कलम बनी मेरी पतवार।।
अटल इरादों वाली है ये,इसकी चाल तूफानी है।
इसमें स्याही के बदले मेरी ,आंखों वाला पानी है।।
कलम का सौदा कर न सकूँगा,
मैं खुद से धोखा कर न सकूँगा।
इसके सहारे जीता हूँ मैं,
इससे धोखा कर न सकूंगा॥
ये मेरी पहचान है,मेरे गौरव की ये निशानी है।
इसमें स्याही के बदले मेरी ,आंखों वाला पानी है।।
– प्रदीप बहुगुणा ’दर्पण’
शानदार और उम्दा लेखन।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतिकरण किया गया है।यह आपके उच्च आदर्शों और सिद्धांतों और उच्च मूल्यों को तथा उच्च विचारों को अभिव्यक्त करने का एक संकेत मात्र है। आप ज्ञान के भंडार है । आपको कोटि कोटि नमन है
धन्यवाद सर
हार्दिक आभार।
आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं जो समय समय पर कि आपकी लेखनी में परिलक्षित भी होता है, काव्य में शब्दों का यथोचित चयन आपकी विलक्षण प्रतिभा व काव्य लेखन के प्रति आपका अभूतपूर्व प्यार का द्योतक है, आशा ही नहीं विश्वास भी है कि आप अपनी रचनाओं का रसास्वादन यों ही निरन्तर कराते रहेंगे 🙏
Bahut badiya 👌👌
अति सुंदर भेजी
बहुत सुंदर sir।
हार्दिक आभार भाईसाहब।
Great 👍
Very nice sir keep it up God bless you,👍👍
🙏
बहुत सुंदर
शानदार रचना। शुभकामनाएं बहुगुणा जी।
आप सभी का हार्दिक आभार।
बहुत सुंदर
बहुत ही सुन्दर रचना 👌👌
बहुत ही सुन्दर रचना
अति उत्तम रचना है।