पारंपरिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण के लिए दून पहुंची पर्वतीय राज्यों की ये दादी- नानियां, भारतीय वन्यजीव संस्थान की पहल

लोक परंपराओं और अनुभव पर आधारित वैज्ञानिक ज्ञान भौतिकता से परिपूर्ण वर्तमान जीवन में अत्यंत सार्थक और उपयोगी हो सकता है। पुराने जमाने के अनुभव आधारित ज्ञान को अपना कर कई प्रकार की समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है। भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून द्वारा इस दिशा में एक सकारात्मक पहल की गई है।

Wildlife institute of india to document traditional knowledge of india

भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून में आज नदी बेसिन के पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण पर आधारित पारंपरिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण के लिए एक चार दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ किया गया। कार्यशाला में भारत के  पर्वतीय राज्यों से 111 वृद्ध पर्वतीय महिलाओं को आमंत्रित किया गया है। दादी – नानी की उम्र की इन महिलाओं के पास पारिस्थितिकी संरक्षण हेतु अनेक व्यवहारिक तकनीकों का लंबा अनुभव है । इनके पारंपरिक ज्ञान का लिखित रूप में दस्तावेजीकरण करना और उसे जनमानस के लाभ हेतु प्रचारित करना इस कार्यशाला का उद्देश्य है

कार्यशाला का शुभारंभ आज उत्तराखंड के लोक गायक व सामाजिक कार्यकर्त्ता एवं कार्यक्रम के मुख्य अतिथि नरेन्द्र सिंह नेगी के कर कमलों से हुआ। विशेष वक्ताओं में कालिंदी बडोला कथाकार और रेडियो जॉकी, गीता गैरोला, पूर्व निदेशक, महिला समाख्या, उत्तराखंड, डॉ शोभा भार्गव, पूर्व प्रोफेसर, पुणे विश्वविद्यालय, डॉ यादवेंद्र, पूर्व निदेशक, सीएसआइआर सीबीआरआइ व लेखक, तृप्ति नंदकुमारन लेखिका,  हंजाबम शुभ्रा शर्मा, संस्थापक, माइरा फूड्स मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स, मणिपुर,शीबा असलम, वरिष्ठ पत्रकार, शादाब रज़ा, कवियित्री, और डॉ राकेश भट्ट, लोक संगीतकार एवं संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार 2023 के प्राप्तकर्त्ता, आदि शामिल हैं।

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन द्वारा वित्तपोषित परियोजना ‘गंगा जैवविविधता संरक्षण’ के तहत दादी नानी मां के परंपरागत ज्ञान पर आधारित ‘ नदी बेसिन के पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण पर आधारित पारंपरिक ज्ञान का दस्तावेजीकरण’ नामक कार्यशाला का आयोजन संस्थान के निदेशक वीरेंद्र आर. तिवारी एवं संकायाध्यक्ष व वैज्ञानिक जी, डॉ. रूचि बडोला के निर्देशन में किया जा रहा है।

कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य मौखिक और व्यवहारिक रूप से पारंपरिक और सांस्कृतिक ज्ञान को संकलित करना है, जिसमें रीति-रिवाज़, लोककथाएँ, लोकगीत, कृषि प्रथाएँ और पारंपरिक व्यंजन आदि शामिल हैं।

कार्यशाला में गंगा बेसिन के 8 राज्यों के लिए पहाड़ों से आई 111 दादी-नानियाँ प्रतिभाग कर रही हैं व विभिन्न राज्यों से पारंपरिक ज्ञान के विशेषज्ञ, पर्यावरणविद और संरक्षणकर्ता भी उपस्थित होकर पारंपरिक ज्ञान और संरक्षण पर वार्ता करेंगे।

कार्यशाला के पहले दिन लोककथाओं और लोकगीतों के माध्यम से पद्मश्री डॉ माधुरी बर्थवाल, पूर्व संगीत निदेशक, आकाशवाणी, नजीबाबाद, कथाकार के साथ ही हर्षा लखेड़ा,कालिंदी बडोला, तृप्ती नंदकुमारन ने नदियों के संरक्षण पर पारंपरिक ज्ञान साझा किया। इसके साथ ही प्रतिभागियों से उनके क्षेत्र विशेष की पौराणिक कहानी, पारंपरिक व्यंजन, नदी से जुड़े लोकपर्व, लोकगीतों का दस्तावेजीकरण किया गया। गंगा नदी बेसिन के राज्यों के लोकनृत्यों के मंचन के साथ भव्य सांस्कृतिक संध्या के साथ पहले दिन के कार्यक्रम का समापन हुआ।

अगले तीन दिनों में पांरपरिक भोजन और स्वास्थ्य-श्री अन्न से श्री वृद्धि तक की यात्रा, उद्यमिता में महिलाएँ, प्रकृति हमारी औषधालय-पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियाँ और औषधीय पादप, नदियों से जुड़ी परंपराएँ, अनुराग अविरल, निर्मल राग गंगा का लोक गीतों में परंपराएँ, संरक्षण संबंधी प्रथाएँ और जन आंदोलन आदि विषयों पर सार्थक संवाद और विचार विमर्श किया जाएगा तथा परम्पराओं, रीति रिवाजों, लोककथाओं, लोकऔषधियों, लोकगीतों के दस्तावेजीकरण के द्वारा इन परम्पराओं को नई पीढ़ी के लिये संकलित करने और उन तक पहुँचाने का कार्य किया जायेगा।

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