प्रारंभिक शिक्षा निदेशालय उत्तराखंड के सभागार में मकर सक्रांति अवकाश के दिन एससीईआरटी उत्तराखंड राजकीय शिक्षक शाखा के तत्वावधान में शैक्षिक उन्नयन गोष्ठी का आयोजन किया गया। प्रदेशभर से आए शिक्षकों के साथ निदेशक प्रारंभिक शिक्षा वंदना गर्ब्याल एवं क्षेत्रीय निदेशक केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड डॉ रणवीर सिंह भी उपस्थित रहे। गोष्ठी में पीजीआई इंडेक्स के आधार पर उत्तराखंड के निम्न स्थान पर रहने तथा राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण में उत्तराखंड के न्यून प्रदर्शन के कारणों पर विचार करते हुए शिक्षकों की समस्याओं पर भी लंबी चर्चा हुई।
आज मकर सक्रांति के अवकाश के दिन ननूरखेड़ा देहरादून स्थित प्रारंभिक शिक्षा निदेशालय उत्तराखंड के सभागार में राजकीय शिक्षक संघ उत्तराखंड की एससीईआरटी शाखा के अध्यक्ष डॉक्टर अंकित जोशी के आह्वान पर शैक्षिक उन्नयन गोष्ठी का आयोजन किया गया गोष्ठी में प्रदेशभर से आए शिक्षकों ने प्रतिभाग किया। कार्यक्रम में निदेशक प्रारंभिक शिक्षा वंदना गर्ब्याल एवं क्षेत्रीय निदेशक केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड डॉ रणवीर सिंह भी उपस्थित रहे, जिन्होंने उत्तराखंड की शिक्षा पर हो रहे इस विमर्श में अपने महत्वपूर्ण विचार रखे।
पीजीआई इंडेक्स और राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण पर हुई चर्चा
राष्ट्रीय स्तर पर जारी परफॉर्मेंस ग्रेड इंडेक्स (पीजीआई इंडेक्स) और राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (NAS) की रिपोर्ट के आधार पर डाक्टर अंकित जोशी ने प्रस्तुतीकरण दिया। उन्होंने बताया कि पूरे भारतवर्ष के राष्ट्रीय औसत के हिसाब से उत्तराखंड की स्थिति क्या है। उत्तराखंड के राष्ट्रीय स्तर पर न्यून प्रदर्शन की समीक्षा करते हुए सभी वक्ताओं ने चिंता व्यक्त की और इसके कारणों और समाधान पर भी चर्चा की। डॉक्टर अंकित जोशी ने बताया कि पीजीआई इंडेक्स के आधार पर उत्तराखंड का स्थान 37 में से 35 में है जो हमारे लिए अत्यंत चिंता का विषय है। इस पर अपने विचार रखते हुए डॉ नंदकिशोर हटवाल ने सुझाव दिया कि प्रदेश के हित में अकादमिक निर्णय लेने में जल्दबाजी और लापरवाही बिल्कुल भी नहीं होनी चाहिए। विशेषकर देखा है जाता है कि पदोन्नति नियुक्ति व स्थानांतरण जैसे प्रशासनिक निर्णय तो काफी सोच समझकर लंबी कार्यवाही के बाद लिए जाते हैं जबकि अकादमिक निर्णय लेते समय इतना सोच विचार नहीं किया जाता जिसका दुष्प्रभाव छात्रों के अधिगम स्तर पर पड़ता है। राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक रमेश चंद्र बडोनी ने संसाधनों के विकास किए जाने और पारदर्शी प्रशासनिक प्रशासनिक प्रणाली की आवश्यकता जताई।
अंकित जोशी ने विभागीय स्तर पर लिए जाने वाले निर्णयों में हीलाहवाली पर चिंता व्यक्त की।भुवनेश पंत ने शिक्षा के स्तर में उन्नयन के लिए पारदर्शी स्थानांतरण नीति तथा शिक्षक स्वायत्तता की मांग की। भुवन चंद्र कुनियाल ने अपनी बात रखते हुए कहा कि वर्तमान समय में शिक्षा व्यवस्था में निर्णय लेने में शिक्षक को भागीदार न बनाने के कारण व्यवहारिक योजनाएं नहीं बन पाती हैं।
एल टी से प्रवक्ता पदोन्नति संघर्ष समिति के अध्यक्ष केसर सिंह रावत ने अवगत कराया कि 25- 30 वर्षों की सेवा के बाद भी शिक्षकों की पदोन्नति प्रवक्ता पद पर नहीं हो रही है पिछले कई वर्षों से संघर्ष करने के बावजूद भी बिना पदोन्नति के शिक्षक सेवानिवृत्ति के कगार पर हैं। प्रवक्ताओं के 3000 से भी अधिक पद पदोन्नति कोटे के हैं जो रिक्त चल रहे हैं। इस प्रकार की विभागीय कार्यशैली से शिक्षकों के मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और वह हताशा के शिकार होते जा रहे हैं । महत्वपूर्ण विषयों के पद रिक्त होने तथा शिक्षकों की समस्याओं के समयबद्ध निराकरण न होने के कारण इसका दुष्प्रभाव शिक्षण व्यवस्था पर पड़ रहा है। नंदा बल्लभ पंत ने कहा कि जब तक समस्त शिक्षण संस्थानों में पूर्णकालिक प्रधानाचार्य उपलब्ध नहीं कराए जाते तब तक गुणवत्ता की बात करना बेमानी है।
मनोज बहुगुणा ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के संदर्भ में अपनी बात रखते हुए कहा कि उत्तराखंड में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 लागू कर दी गई है लेकिन इसके सफल क्रियान्वयन के लिए सबसे महत्वपूर्ण घटक शिक्षक ही हैं। कृष्ण कुमार कोटनाला कोटनाला ने सुझाव दिया कि वर्तमान समय में जिस प्रकार शिक्षकों को अविश्वास की दृष्टि से देखा जा रहा है वह उचित नहीं है शिक्षक पर विश्वास करके शिक्षक को स्वायत्तता देने से ही गुणवत्ता में सुधार हो सकता है। शिक्षिका मनीषा राय और पूनम भटनागर ने शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्यों में अत्यधिक व्यस्त किए जाने पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा की शिक्षक को केवल शिक्षण कार्य के लिए ही समर्पित होना चाहिए। इस अवसर पर रविंद्र मंमगाई,नरेश जमलोकी सहित कई अन्य शिक्षकों ने भी अपने महत्वपूर्ण सुझाव दिए।
शैक्षिक सुधार हमारी सामूहिक जिम्मेदारी: गर्ब्याल
गोष्ठी में हुई महत्वपूर्ण चर्चा और सुझावों की प्रशंसा करते हुए निदेशक प्रारंभिक शिक्षा श्रीमती वंदना गर्ब्याल ने कहा कि यह अच्छी बात है कि प्रदेश स्तर पर शैक्षिक उन्नयन के लिए इस प्रकार की गोष्ठी आयोजित की गई है ।उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था में उत्तरोत्तर सुधार करना शिक्षकों, अधिकारियों और समाज की भी सामूहिक जिम्मेदारी है यदि हम सभी मिलकर कार्य करेंगे तो निश्चित रूप से इसके अच्छे परिणाम सकारात्मक रूप से सामने आएंगे।
शिक्षा के लिए समर्पण जरूरी: डा. रणवीर
गोष्ठी के मुख्य अतिथि व वक्ता क्षेत्रीय निदेशक सीबीएसई देहरादून उत्तराखंड ने प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली का उल्लेख करते हुए कहां की प्राचीन काल में विदेशों से भी भारत में तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालयों में छात्र पढ़ने के लिए आते थे हमारा इतिहास गौरवपूर्ण मूल्यपरक तथा जनोपयोगी शिक्षा का रहा है। उन्होंने कहा समस्याओं के समाधान के लिए संगठन बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है क्योंकि संगठन में शक्ति होती है इसलिए राजकीय शिक्षक संघ को अपनी बात शिक्षा विभाग तथा शासन के समक्ष मजबूती से रखनी चाहिए जिससे शिक्षा प्रणाली में सुधार हो सके और हम उत्तराखंड को राष्ट्रीय परिदृश्य में उच्च स्थान पर ले जा सके लेकिन इसके लिए समर्पण की आवश्यकता है बिना समर्पण के हम ज्ञान तो अर्जित कर सकते हैं किंतु संस्कार नहीं। वर्तमान समय में समर्पित शिक्षकों,अधिकारियों व शिक्षा के हितधारकों की आवश्यकता है।
कार्यक्रम का संचालन भुवन कुनियाल तथा गिरीश थपलियाल ने किया।इस अवसर पर एच एस बिष्ट ,प्रमोद कपूरवाण,विपुल सकलानी विनय थपलियाल, मनीष मैठानी, प्रदीप बहुगुणा शिवानी चंदेल, रेनू चौहान, केदारी रतूड़ी, शांति नौटियाल,विनय करासी, आशुतोष भंडारी, नागेंद्र सिंह पवार, शैलेश प्रसाद वशिष्ठ आदि कई शिक्षक शिक्षिकाएं उपस्थित थे।
समय और जरुरत बलदते ही सब के चेहरे बेनकाब हो जाते है पता नहीं या तो हम में कुछ कमी आ जाती है या वो Acting अच्छी करने लगते है I उम्मीद है एक दिन सब कुछ बदलेगा और निरंतर इस प्रकार के आयोजन से सकारात्मक और सहयोगात्मक कार्य प्रणाली को भी क्षमताएं बढ़ाने का अवसर प्राप्त होता है। आपके प्रयास अनुकरणीय है बहुगुणा जी । ईश्वर आपको निर्भय लिखने की सारी क्षमताएं दे ऐसी कामना है ।।
धन्यवाद सर।