धनतेरस पर मातु लक्ष्मी,
भले ही धन मत बरसाओ।
पर किसी गरीब को माते
कभी भूखे पेट ना तरसाओ।
पर किसी गरीब को माते
कभी भूखे पेट ना तरसाओ।
ना मिले किसी को नए गहने,
ना नई किसी को कार मिले।
पर पेट पालने को अपना,
मां सब को रोजगार मिले।।
ना जलें पटाखों की लड़ियाँ,
न चलें भले ही फुलझड़ियाँ।
पर मिटा दो माँ सबके जीवन से,
दुःख और लाचारी की घड़ियां।।
न चलें भले ही फुलझड़ियाँ।
पर मिटा दो माँ सबके जीवन से,
दुःख और लाचारी की घड़ियां।।
न रहे कहीं भी कंगाली
आये हर घर में खुशहाली।
मिटा अंधेरे, हर एक दिल के,
माँ मनवा दो, सच्ची दीवाली।
प्रदीप बहुगुणा’ दर्पण’
पोस्ट पर अपने सुझाव/प्रतिक्रिया देने अथवा अधिक जानकारी हेतु यहाँ लिखें…
सुंदर प्रस्तुति
सुंदर संवेदनशील प्रस्तुति
भावपूर्ण प्रस्तुति0
आप सभी सुधीजनों का आभार।
बहुत सुन्दर रचना।
बहुत सुंदर
बहुत सुन्दर रचना! आदरणीय बहुगुणा जी आपको सपरिवार धनतेरस व दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!
Nice