शराब के ठेकों का खुलना और कोविड -19

                        देश मे कोविड -19 महामारी के चलते 04 मई 2020 से लाकडाउन का तीसरा चरण प्रारम्भ हो गया है । इस बार के लाकडाउन मे सरकार द्वारा कई रियायतें दी  गई हैं । सबसे बड़ी राहत शराब पीने वालों को मिली है। शराब की दुकानें एक बार फिर से रोशन हो गई हैं । हों भी क्यों न? प्रसिद्ध गजल गायक पंकज उधास भी इसका राज बता चुके हैं कि – “शराब चीज ही ऐसी है , न छोड़ी जाये…..। “समझ में तो ये नहीं आ रहा है,कि इतने दिन तक बेचारों ने सब्र कैसे कर लिया? वैसे अंदर की बात तो ये है कि सबने कुछ न कुछ इंतजाम कर ही लिया था। और फिर सच्ची लगन से ढूँढने पर  तो भगवान भी मिल जाते हैं, तो शराब क्यों न मिलेगी। बस कुछ कठिनाई जरूर हुई। जो बेचारे इंतजाम न कर पाये, उनकी हालत जरूर खराब हो गई थी। उनकी व्यथा जल बिन तड़पती कोई मछली ही समझ सकती है।

फोटो इन्टरनेट (साभार )

               यही कारण है कि शराब के ठेके खुलते ही इतनी भीड़ टूट पड़ी कि नोटबंदी के समय लगी लाइनों का भी रिकार्ड टूट गया । मुफ्त में बांटे जा रहे भोजन और राशन के लिए भी  लोगों की इतनी भीड़ कहीं दिखाई नहीं दी, जितनी कि महंगी शराब को खरीदने के लिए उमड़ आई। दो-दो किलोमीटर से भी ज्यादा लंबी पंक्तियों में लोग अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। बारिश, ओलों , धूप , आंधी … किसी भी चीज की परवाह न कर रहे ये महामानव वास्तव में समर्पण की प्रतिमूर्ति हैं।इतना ही नहीं , जहां कोरोना वायरस के खतरे के चलते लोग घर से निकलने में भी डर रहे हैं, वहीं ये महामानव जान हथेली पर लेकर एक – दूसरे के कंधों पर चढ़े एक अदद  बोतल के लिए व्याकुल हैं। घर में राशन हो या न हो, उसकी चिंता छोड़कर महंगी से महंगी बोतल खरीदने के लिए घंटों इंतजार कर रहें हैं। जाति, धर्म, संप्रदाय जैसे सभी वर्गभेदों को दरकिनार कर सामाजिक एकता का ज्वलंत उदाहरण प्रस्तुत करते हुए हरिवंश राय बच्चन जी की मशहूर पंक्तियों को चरितार्थ कर रहे हैं कि-    ……..

फोटो इन्टरनेट (साभार )

     ” बैर कराते मंदिर मस्जिद, मेल कराती मधुशाला।”
                     देश की डूबती अर्थव्यवस्था को बचाने में योगदान देने वाले ये  सच्चे नागरिक हम पर  कितना उपकार कर रहें हैं, इसका पता इस तथ्य से चलता है कि लगभग सभी राज्यों की सरकारों ने आगे बढ़कर शराब की दुकानों को खोल दिया है। अब भले ही लाकडाउन की धज्जियां उड़ें और महामारी के संक्रमण की दर बढ़े, लेकिन राजस्व में तो वृद्धि अवश्य होनी चाहिए। आखिर सरकार चलाने के लिए पैसा तो चाहिए न।
          कुल मिलाकर आज इन वीरों को नमन करने का मन कर रहा है, क्योंकि जहां लोग बात- बात पर महंगाई का रोना रोते हुए सरकार को कोसते रहते हैं, ये सच्चे नागरिक कभी भी शराब के महंगे होने पर उफ तक नहीं करते ,और देश की लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को सहारा देते हैं।
              ऐसे में सरकार से निवेदन है कि इनके अभूतपूर्व समर्पण और योगदान को देखते हुए शराब की होम डिलीवरी करने की व्यवस्था की जाए,  इनके प्रति कृतज्ञता प्रदर्शित करने का इससे बेहतर तरीका और क्या हो सकता है?

          …….. प्रदीप बहुगुणा ‘दर्पण’

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8 thoughts on “शराब के ठेकों का खुलना और कोविड -19”

  1. लगता है, शराब के दीवाने संख्या में अन्न और जल के जरूरतमंदों से ज्यादा हैं?
    सुंदर प्रस्तुति बहुगुणा जी।
    साधुवाद।

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  2. बैर कराते मन्दिर मस्जिद, मेल कराती मधुशाला,
    किसने कहा खुद के लिए थे खड़े,
    कह रहे थे चिला चिला कर,
    हमने लाइन से इतर घर बैठे थे जो, उनका बोझ संभाला

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  3. निश्चित ही देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए सार्थक कदम समय पर यदि नहीं लिए गए तो यह शराब और शराब के उपभोक्ता हमारे देश की अर्थव्यवस्था को आगे ले जाने में अग्रणी हो जाएंगे और शायद इनका हम सभी सरकारी सेवकों के लिए उपकार ही होगा कि इनकी वजह से हमारे घर चलने लगे हैं क्योंकि आज सरकार और सरकार के नुमाइंदे यही कहते हुए सुनाई दे रहे हैं कि आने वाले समय में हुए वे वेतन देने में भी असमर्थ है l अतः जो भी मनसा रही हो परंतु वास्तव में यह मधुशाला कईयों के लिए रोजगार और कईयों के लिए एक मातम बनकर आएगी l अब यदि कोरोना से इसकी तुलना करेंगे तो निश्चित ही यह बेमानी होगी l क्योंकि कोरोना से तो बाद में लड़ लेंगे पहले अपने पेट और अपनी नशे की लत को इन 40 दिनों के अंतर में जो खोया है उसे पूरा कर लेने दो। तो मेरे भाई आपका लेख सार्थक है जो आने वाले समय में कुछ अनिश्चित परिणाम अवश्य दर्शाएगा।

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  4. Yhi to dikkt h sir ji…
    Arthvyavastha chalane ke kya aur sadhan Nahin a Sakte kya rajsva ke liye sirf Sharab Ati avashyak Hai bahut sari Vikalp ho sakte hain per Hamare netaon ko Aadat Ho Gai Hai Sar ji bade bade vade karne ke Jhuthe Jhuthe Dur Drishti wale Soch Dikhane ki, aur hme b pani k flow jaisa un wadon me bahne ki Kya Karen Sar ji 1947 Mein Desh Azad to Ho Gaya per abhi bhi Gulam mansikta wale log Hain Yahan dhanyvad Sar ji

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