स्वामी रामेश्वरानंद |
वर्तमान समय में जहां एक ,विधायक, सांसद या कोई जनप्रतिनिधि बनना ही अमीर हो जाने की गारंटी होने जैसा है। इतना ही नहीं कई लोग तो जनसेवा का ढोंग करते- करते अरबों-खरबों की संपत्ति जमा कर अपनी सात पुश्तों तक का इंतजाम कर लेते हैं, लेकिन आप यकीन नहीं करेंगे यह हमारे ही देश में कई ऐसे लोग भी हैं और पहले भी हुए हैं जिन्होंने वास्तविक रुप से जन सेवा के लिए ही राजनीति की राह पर कदम बढ़ाया। ऐसे ही एक व्यक्ति से हम आपका आज परिचय करा रहे हैं भारत की तीसरी लोकसभा में हरियाणा की करनाल लोकसभा सीट से सांसद रहे #स्वामी रामेश्वरानंद का नाम आज कितने लोग जानते हैं,दुख की बात है कि भौतिकता के इस युग में ऐसे लोगों का जिक्र ही नहीं होता। घोर पतन और भ्रष्टाचार के इस दौर में वर्तमान पीढ़ी को उनके आदर्शों के व्यवहार के बारे में जानना जरूरी है। सच में इस बात पर यकीन करना मुश्किल है कि कोई ऐसा सांसद भी हो सकता है। स्वामी रामेश्वरानंद आर्य समाज से जुड़े गुरुकुल घरोंदा के एक आचार्य थे। जनसंघ के टिकट पर चुनाव जीतकर भारत की तीसरी लोकसभा में जब वे सांसद बने तो उन्होंने सरकारी आवास नहीं लिया और वे दिल्ली के सीताराम बाजार के आर्य समाज मंदिर में ही रहते थे ।संसद की कार्यवाही में भाग लेने के लिए अपने आवास स्थल से संसद तक सरकारी वाहन का उपयोग न करके पैदल ही जाया करते थे। अपना सारा वेतन भी वे राष्ट्र रक्षा कोष में जमा कर देते थे।
प्रधानमंत्री इंदिरा जी को ज्ञापन सौंपते हुए स्वामीजी |
संसद में कोई भी प्रश्न पूछने से पहले स्वामी जी अपने उद्बोधन की शुरुवात हमेशा वेद मंत्र से करते थे। सांसद रहते हुए ही उन्होंने एक बार गोहत्या पर प्रतिबंध की मांग को लेकर संसद घेराव भी किया था। एक बार इंदिरा गांधी जी ने किसी मीटिंग में स्वामी जी को एक पांच सितारा होटल में बुलाया। भोजन के समय जब सभी लोग बुफे काउंटर की ओर चल दिये तो स्वामीजी ने अपनी जेब से कागज में लपेटी हुई बाजरे की दो सूखी रोटियाँ निकाली और बुफे काउंटर से दूर जमीन पर बैठकर खाने लगे। इंदिरा जी ने पूछा – “आप ये क्या कर रहे हैं ? क्या यहां खाना नहीं मिलता ? ये सभी पांच सितारा व्यवस्थाएं आप सांसदों के लिए ही तो की गई है ।” स्वामी जी बोले – “मैं संन्यासी हूं। सुबह भिक्षा में किसी ने यही रोटियां दी थी । भला मैं सरकारी धन से रोटी कैसे खा सकता हूं?” इंदिरा जी के बहुत जिद करने पर होटल से उन्होंने एक गिलास पानी और आम के अचार की एक फांक ली,जिसका भुगतान भी उन्होंने स्वयं किया था। स्वामी रामेश्वरानंद जी ने आचार्य की उपाधि प्राप्त कर लाहौर, अजमेर , हरिद्वार, ऋषिकेश खुर्जा, बनारस आदि कई स्थानों पर अध्ययन- अध्यापन किया था। वे आजीवन ब्रह्मचारी रहे, उनका जीवन आर्य समाज के सिद्धांतों का प्रचार करने , लोगों को नैतिक आचरण और ग्रामीण जनता को कृषि और पशु-पालन के तरीके सिखाने में ही बीता। वेदों, स्मृतियों और दर्शन संबंधी किताबों के अध्ययन में उनकी विशेष रूचि थी। एक अच्छे अध्येता होने के साथ- साथ स्वामी जी अच्छे उपदेशक और लेखक भी थे। उनकी प्रकाशित पुस्तकों में ऋषि दयानंद और आर्य समाज, पंडित; शिल्पी ब्राह्मण; नमस्ते प्रदीप; विवाह वैदिक संध्याभाष्य ब्रह्मोच्च्डकम आदि उल्लेखनीय हैं. देव भूमि भारत में ऐसे अनेकों साधक हुए हैं, जिनके बारे में हमें पढ़ाया ही नहीं जाता। ऐसे व्यक्तित्वों के कारण ही भारत को तपस्वियों का देश कहा जाता है।
प्रदीप बहुगुणा’दर्पण’
Bohot acha likha hai
बहुत खूब
Aj k yug m hme ase e neta ki jarurt h..
Bhut khub 🙏🙏
Nice sir
Beautiful and inspiring
बहुत हैं ऐसे सांसद ! ज्योति बसु ' हरकिशन सुरजीत जैसों पर भी लिखिएगा !
जी बिल्कुल, ऐसे सभी लोगों को नमन।
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