डा. उमेश चमोला की कृति ‘उत्तराखंड की एक सौ बालोपयोगी लोककथाएँ ‘ का लोकार्पण : उत्तराखंडी समाज का आईना हैं ये कथाएं

देहरादून, 26 मई.

दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र देहरादून के तत्वावधान में आज वरिष्ठ साहित्यकार व शिक्षाविद्  डॉ. उमेश चमोला की पुस्तक ‘उत्तराखंड की एक सौ बालोपयोगी लोककथाएँ’  का लोकार्पण केंद्र के सभागार में  सम्पन्न हुआ।

Umesh chamola' book launched at doon library

पुस्तक के लोकार्पण के बाद कार्यक्रम में उपस्थित साहित्यकारों द्वारा इस पुस्तक की विषयवस्तु, प्रासंगिकता और  लोक जीवन के लिए इसके महत्व पर विस्तृत चर्चा भी की गई , जिसमें उत्तराखंड के जाने माने साहित्यकारों मुकेश नौटियाल, डॉ. नन्द किशोर हटवाल, बीना बेंजवाल, रमाकांत बेंजवाल  और राकेश जुगरान ने भाग लिया ।

वक्ताओं ने डॉ. उमेश चमोला को बधाई देते हुए कहा कि उनका प्रयास नई पीढ़ी को लोक संस्कृति से जोड़ने की दृष्टि से सफल होगा। उन्होंने कहा जहाँ लोक कथाएँ हमें किसी समाज का आइना दिखाती हैं वहीं यह लोक के समाज शास्त्र को समझने की दृष्टि से भी उपयोगी होती हैं।  

कथाकार मुकेश नौटियाल ने कहा कि लोक कथाएँ हमारे समाज की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत करती हैं। यह अन्य कहानियों के लेखन के लिए आधार का भी कार्य करती हैं। 

 पुस्तक के लेखक  डॉ. उमेश चमोला ने अपनी बात रखते हुए कहा कि उन्होने अब तक 23 पुस्तकें लिखी हैं जिनमे से लोक कथाओं की उनकी यह चौथी पुस्तक है।  उन्होंने कहा कि इन पुस्तकों के माध्यम से उन्होंने 300 से अधिक लोक कथाओं को प्रकाशित किया है। उनका प्रयास लोक कथाओं के माध्यम से नई पीढ़ी को लोक संस्कृति से जोड़ना है।

साहित्यकार एवं संस्कृतिकर्मी डॉ. नन्द किशोर हटवाल ने कहा कि वर्तमान संचार तकनीकी और आभासी डिजिटल दुनिया के दौर में लोक कथाओं को सुनने और सुनाने की परम्परा समाप्त होती जा रही है। इसलिए प्रिंट माध्यम से इनका संकलन कर इनका संरक्षण करना महत्वपूर्ण है।

भाषाविद रमाकांत बेंजवाल ने कहा कि लोक कथाएँ हमारी संस्कृति, रीतिरिवाज और परम्पराओं की वाहक होती हैं। लोक में प्रचलित आभूषण, क़ृषि, वस्त्र आदि से सम्बंधित कई शब्द लोक कथाओं में  व्यक्त होते हैं। लोक कथाओं के लुप्त होने पर इन शब्दों के लुप्त होने का भी खतरा है।

शिक्षाविद और साहित्यकार राकेश जुगरान ने कहा कि कहानियां प्राचीन काल से ही बच्चों का प्रिय विषय रही हैं। यह बच्चों के मानसिक विकास की दृष्टि से भी उपयोगी होती हैं। इसलिए डॉ. चमोला का यह प्रयास बच्चों के हित में है।

साहित्यकार बीना बेंजवाल ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए कहा कि लोक कथाएँ लोक संस्कृति की अनोखी धरोहर होती हैं। इसलिए लोक संस्कृति के संरक्षण के लिए आज की परिस्थितियों के अनुरूप लोक कथाओं को संकलित किए जाने पर जोर दिया जाना चाहिए।

ज्ञातव्य है कि  डॉ. उमेश चमोला की लोक कथाओं की  यह चौथी पुस्तक है, जबकि अब तक उनकी दो दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमे गढ़वाली उपन्यास, गढ़वाली गीत – काव्य संग्रह, व्यंग्य कविता संग्रह, हिन्दी बाल कविता संग्रह, एक सौ विज्ञान पहेलियां, विज्ञान कथा संग्रह, बाल नाटिका संग्रह, लियो तालसतोय और शेक्सपियर की कहानी और नाटकों का गढ़वाली अनुवाद सम्मिलित है। डॉ. चमोला की अंग्रेजी में लिखी पुस्तक ‘चिक -चिक एन्ड ब्लोइंग विंड ‘का जापानी और बांग्ला भाषा में अनुवाद हो चुका है। उनकी विज्ञान कथाओं का पंजाबी भाषा में अनुवाद हो चुका है। श्री गुरु रामराय विश्वविद्यालय देहरादून के एम. ए स्तर के पाठ्यक्रम में उनका गढ़वाली उपन्यास ‘ निरबिजु’ सम्मिलित है। डॉ. चमोला के शैक्षिक शोध एन. सी. ई. आर. टी नई दिल्ली के द्वारा प्रकाशित शोध पत्रिका ‘भारतीय आधुनिक शिक्षा ‘ में प्रकाशित हो चुके हैं।

दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने प्रारम्भ में स्वागत करते हुए कहा कि दून पुस्तकालय और शोध केंद्र का उद्देश्य इस तरह क़े कार्यक्रमों क़े माध्यम से आम पाठकों में पठन-पाठन में अभिरूचि पैदा करना है.

काव्यांश प्रकाशन के प्रबोध उनियाल ने कहा कि श्रेष्ठ पुस्तकों के प्रकाशन के माध्यम से उनका प्रकाशन पढ़ने की संस्कृति को बढ़ावा दे रहा है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि डॉ. चमोला की पुस्तक के माध्यम से बच्चों को अपनी संस्कृति को जानने का अवसर प्राप्त होगा।

इस अवसर पर वरिष्ठ रंगकर्मी श्रीश डोभाल, शूरवीर सिंह रावत,ओम प्रकाश जमलोकी, प्रदीप डबराल, भारती मिश्रा,आलोक कुमार सरीन, सुरेन्द्र सजवान,शैलेन्द्र नौटियाल, सत्यानंद बडोनी, कुलभूषण नैथानी, राकेश कुमार,सुंदर सिंह बिष्ट, हरिओम पाली, अरविन्द प्रकृति प्रेमी, देवेंद्र कुमार कांडपाल, डॉ. वी क़े डोभाल,सोमेश्वर पांडे, शशि भूषण बडोनी, प्रेमी साहिल सहित पाठकगण, लेखक, साहित्यकार व अन्य लोग उपस्थित थे।

Leave a Comment

Exit mobile version