देशप्रेम पर एक प्रस्तुति : न तन चाहिए, न धन चाहिए, जन्नत के जैसा वतन चाहिए । टूट जाएंगे पिंजरे भी ए पंछियों उड़ने की दिल में लगन चाहिए। मंदिर का नहीं, मस्जिद का नहीं, इंसानियत का केवल जतन चाहिए।


                             न तन चाहिए, न धन चाहिए,

जन्नत के जैसा वतन चाहिए ।

टूट जाएंगे पिंजरे भी ए पंछियों

उड़ने की दिल में लगन चाहिए।

मंदिर का नहीं,मस्जिद का नहीं,

इंसानियत का केवल जतन चाहिए।

नहीं कोई राजा, न कोई भिखारी,

लगें सब बराबर, वो जन चाहिए।

हिन्दू या मुस्लिम,सिक्ख-ईसाई,

सब हमराह और हमवतन चाहिए।

गिरा दो दीवारें, आपस की सारी,

साझे में सबका आँगन चाहिए।

एक ही छत के नीचे रहें हम सभी,

आज ऐसा ही वातावरण चाहिए।

शायरों तुमको अपनी शायरी की कसम,

गजलों में मिटने का फन चाहिए।

खोल दे जो आँखें इस समाज की,

गीतों में अब वो वजन चाहिए।

         ….प्रदीप बहुगुणा दर्पण


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