बचपन पर एक बेहतरीन कविता…निश्छल बचपन है सम ईश्वर

बचपन जीवन का वह दौर होता है जो मन के किसी कोने में हमेशा छुपा होता है। जीवन को आनदं और सहजता से भर देता है। जीवन में ऊर्जित होकर कोई कार्य सम्पन्न करना हो तो स्वयं के भीतर ईश्वरीय वरदान अर्थात बचपन जिंदा रखे।

” निश्छल बचपन है सम ईश्वर ”

न कोई उलझन यहाँ ,
दिमाग़ों के तार में।
हर मुश्किल के हल यहाँ,
सरल-सहज व्यवहार में।

शरारतें यहाँ कोई साजिश नहीं हैं।
यह तो मासूमियत की चरम स्थिति है।

बुद्धि के खेल में कहाँ तृप्ति है?
नादानियों में भी छुपी जिंदगी है।

झांक कर देखो स्वयं के भीतर,
जिंदा है अभी भी बचपन का मंजर।